बहुत कुछ होता

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ज़ेहन ज़िंदान न होता तो बहुत कुछ होता
मैं परेशान न होता तो बहुत कुछ होता


बद-सुलूकी तेरी बर्दाश्त किये जा रहा हूँ
तू जो मेहमान न होता तो बहुत कुछ होता


देख कर ख़ून उतर आया मेरी आँखों में
वो पशेमान न होता तो बहुत कुछ होता


राह चलते हुए टकरा गया मैं क़िस्मत से
उससे अंजान न होता तो बहुत कुछ होता


इक सुख़न-साज़ था मैं क्यों मुझे उस्ताद किया
गर ये बोहतान न होता तो बहुत कुछ होता


इक खंरोच आई बदन पर तो भड़कता क्यों है
वो निगहबान न होता तो बहुत कुछ होता


गुल को तोड़ा गया रक्खा गया फिर फेंक दिया
जो ये गुलदान न होता तो बहुत कुछ होता


बातों बातों में ही हम काट दिए रात 'असद'
दिल ये नादान ना होता तो बहुत कुछ होता


वैभव असद अकबराबादी 🖤

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6 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

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Rupesh Kumar

28-Dec-2023 08:52 PM

बहुत खूब

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Reyaan

28-Dec-2023 08:33 PM

V nice

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